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हिंदी कवितायें
भारतीय नवयुवकों/नवयुवतियों सहित सम्पूर्ण भारतीय नागरिकों को हिन्दी भाषा के विकास एवं उत्थान के लिए देश एवं विदेश में इस भाषा के प्रचार एवं प्रसार हेतु हिन्दी काव्य एवं साहित्य के प्रति जागरूक करना हैं। आइये रचनात्मक होकर हम हिंदी कवितायें अथवा हिन्दी काव्य एवं साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण सकारात्मक भूमिका अदा करते हैं। - ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न" , लेखक /साहित्यकार , पौड़ी गढ़वाल , उत्तराखंड।
करोनाकाल में करोना से पीड़ित व्यक्ति एवं धरती माँ के भाव का कविता रूप
करोनाकाल के प्रथम चरण में लिखी गयी कविता में पीड़ित व्यक्ति एवं धरती माँ के भाव को व्यक्त किया गया है।
धरती माँ की पुकार
तुम देव लोक की अप्सराये ,
मेरे लिए मंगल गान गाना।
इस जहर को निगलो नीलकंठ ,
मुझे तुम मोहिनी अमृत पिलाना।।
आसमान का एकलौता राहगीर,
कल नए सुबह की किरण लाना।
चुराकर बदलो को पवन ,
तुम मेरे तन को खूब भिगाना।।
असुर के हाथो में एक पुत्र,
धरती में नर सिंह देव तुम ,
एक बार फिर से अवतार लेना।
मोहजाल में बंधी एक माँ ,
प्रभु चरणों में आज धरती ,
कोख सुनी होने से मेरी बचाना।।
घर के एक घायल मुसाफिर को,
तड़पती मेरी आँचल में छुपाना।
चूम ले मिट्टी को तू पुत्र ,
मेरे मुसाफिर के लिए तुम ,
प्रभु आज हिमालय से संजीवनी लाना।।
माँ के तन से लिपटकर मुसाफिर ,
कुछ दिन प्रभु ध्यान हो जाना।
खुले द्रौपदी के केशो को देख ,
इस धरती को बदनाम न करना।।
चौदह दिनों के बनवास पर मुसाफिर,
अपनी मर्यादाओ का उल्लंघन न करना।
मेरी शरण में आकर तुम ,
ईश्वर की उपासना करना।।
इतिहास के पन्नो में मुसाफिर ,
इस मिटटी का नाम कामना।
सुरक्षा कवच तोड़कर तुम,
मुझ पर प्रश्न चिन्ह न लगाना।।
फूलो को हाथ में उठाकर मुसाफिर ,
धरती के केशो को संवारना।
इस अंधकार को दूर करके ईश्वर ,
तुम जीवन का एक नया दीपक जलाना।
✍️ ईश्वर तड़ियाल प्रश्न
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1 टिप्पणियाँ
अत्यन्त ही शिक्षाप्रद ।
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