बाल-आशा | माँ पर हिंदी कविता | ईश्वर तड़ियाल प्रश्न


माँ पर हिंदी कविता | बाल-आशा 

इस कविता में एक शिशु अपनी माँ के प्रति अपेक्षाओं को प्रदर्शित करता है। माँ के प्रति एक शिशु की आशा , लगाव , प्रेम / वात्स्ल्य एवं अधिकार कविता रूप में पढ़िए -







बाल-आशा

चाँद तोड़कर लाना मुझे,
खेलना है चाँद सितारों से।
तोड़कर हांड़ी दही लाना मुझे,
खिलाना मुझे तुम बाल-कुँवारों से।।


खिलौने से मत रिझाना मुझे,
खिलौना टूट जाता है।
अपनी गोद मे पकड़ लो माँ मुझे,
तेरी गोद में दिल मेरा मुस्करा जाता है।।








चोट मुझे लगती है,
तुझे पीड़ा लग जाती है।
पानी मे पिता हूँ,
प्यास तेरी बुझ जाती हैं।।








रहता हूँ आँगन में अकेला,
याद तेरी बहुत आती है।
छोड़कर काम-काज सब तू,
मुझे मनाने लगती है।।








पान करता हूँ मैं जब ,
तुम बड़ी प्यारी लगती हो।
चाँद-सितारे भूल जाता,
दुनिया मेरी तुम लगती हो।।








कितना बड़ा सौभाग्य मेरा,
आँचल का सहारा तू मिली।
हँसता रहे सदा मन तेरा,
मेरी दुनिया तुझे मिली।।








आँसू आये आँखों में मेरे,
तुम आँसू न बहाना।
भूख लगी है माँ मुझे,
बात तुम समझ जाना।।








क्या पहचान होगी मेरी,
संस्कार मुझे अच्छे सीखना।
अगर हार होगी जीवन में मेरी,
तुम मुझे जीत दिलाना।।








जीत जीवन में मिल जाए मुझे,
खुशियां तेरी ही जायेगी।
ख़ुशियों में फूलों की खुशबू मेरी,
फूलों में पहचान तेरी हो जाएगी।।








ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"
(यह कविता मेरी काव्य पुस्तक "ईश्वर"से लिया गया है)





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