मोह पर हिंदी कविता | माता पिता पर हिंदी कविता | जीवन पर कविता | कष्टमय जीवन |
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परिचय
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। बिना समाज एवं परिवार के जीवन यापन करना सम्भव नहीं है , अथवा एक कठिन साधना है। परिवार में रहकर मनुष्य अपने अच्छे संस्कारो से शुद्ध सामाजिक कार्यो का निर्वहन करता है, एवं परिवार में रहकर ही सामाजिक अच्छे संस्कारों का हनन कर परिवार एवं समाज अथवा अपना परिवेश एवं संस्कृति को दूषित करने का बीज बोता हैं। माता-पिता मोहवश परिवार , समाज एवं देश -दुनिया को चलाने में जो महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं । हमें जन्म देने वाले ईश्वर भी उन माता पिता को बार -बार धन्यवाद करते है।
चर्चा
धरती में जन्म लेकर जीवन में उपभोग की क्रिया का माध्यम ही प्राणी के जीवन को सुखदायी अथवा दुखदायी बनाता है। मोह जीवन में उपभोग की एक महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य क्रिया हैं। सुनने में और समझने में आपको थोड़ा अटपटा एवं अजीब सा लग रहा होगा कि मोह जीवन में उपभोग की एक क्रिया कैंसी हो सकती हैं। उपभोग का शाब्दिक अर्थ कर्म अथवा कार्य करके स्वयं के लिए अथवा समाज के लिए अथवा समाज द्वारा अपने लिए क्षणभर या दैनिक अथवा निरन्तर किसी वस्तु का उपयोग करना ही सामान्य रूप में उपभोग की क्रिया होती है। मोह तो प्यार , सहानुभूति, घृणा, राग, देष की भाँति मन एवं मस्तिष्क को आनन्द प्रदान करने अथवा मानसिक रूप से पीड़ा देने वाली एक क्रिया नहीं , अहसास है। किन्तु वस्तुतः देखा जाय तो मोह , प्यार , सहानुभूति, घृणा, राग, देष आदि भावना से उत्पन क्रिया ही उपभोग की वस्तु का निर्माण करती है । इसी वस्तु से धरती का उत्थान एवं पतन होता है। मोह के कारण हम है , आप है , यह धरती है और सृष्टि की रचना करने वाले ईश्वर है। मोह के आँचल से उत्पन एक माता पिता और सन्तान का मिलन जीवन को आनन्दायी एवं स्नेही बनाते है, वंही मोह के आँचल से उत्पन माता-पिता और सन्तान जब एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं तो माता-पिता का जीवन अंधकारमय / कष्टमय हो जाता है। माता-पिता के जीवन का पतन हो जाता है। यह मोह उपभोग की क्रिया ही मनुष्य के जीवन को सुखदायी अथवा दुखदायी बनाता है। यह मनुष्य द्वारा बनायी गयी क्रिया अथवा नियम है ईश्वर का धन्यवाद कि यह हर माता-पिता पर लागू नहीं होता। अगर प्रकृति मोह की क्रिया पर कोई नियम बनाती तो निःसंदेह हर माँ-बाप का जीवन सदैव सुखदायी होता। इसलिए मोह ही उपभोग की प्रथम क्रिया है जो कि प्रकृति द्वारा बनायी गयी है और नियम मनुष्य द्वारा। हमें और हमारे समाज को इस नियम का खंडन करना चाहिए और सदैव अपने माता-पिता के प्रति मोह को जीवित रखते हुए उनकी सेवा करनी चाहिए। होम पेज पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें Click Here
आईये इस कड़ी में पढ़ते है एक पारिवारिक हिंदी कविता ......."मोह"
निवेदन - कविता के अंत में भावार्थ /सारांश /उद्देश्य भी जरूर पढ़े -
मोह
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(यह कविता मेरी काव्य पुस्तक "ईश्वर" से संकलित है) होम पेज पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें
भावार्थ /सारांश /उद्देश्य
मोह अथवा माता पिता पर हिंदी कविता में कवि ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न" कविता का भावार्थ बताते हुए यह समझाने का प्रयास कर रहे है कि मोहवश पति -पत्नी अपने प्यार में जीवन का यह सत्य भूल गए कि हमें जन्म देने वाले , हमारा लालन -पालन करने वाले भगवान के तुल्य माता-पिता भी है , जिन्हें अपना भविष्य सुरक्षित करने के उदेश्य से हम अकेला घर-गांव में छोड़कर दूसरे बड़े शहर में चले गए है। झरना और नदियाँ जिस प्रकार निरन्तर गतिशील रहते है , हम भी उसी प्रकार निरंतर परिश्रमशील रहेंगे । जिस प्रकार से बादलों से निकलकर बारिश अपने लिए झील बना लेती है झरना और नदियाँ अपने लिए बहुत बड़ा सागर बना लेती है, जिस प्रकार ईश्वर कण -कण में है , हवा में है, अपने ऊँचे सपनो को देखकर इस विश्व में ख्याति प्राप्त कर, ठीक उसी प्रकार मैं भी अपने लिए एक सुन्दर और बड़ा सा घर बना लूंगा।
आप पढ़ रहे है मोह कविता का सारांश
जीवन की सुखमय धरा निरन्तर बहती रही। इसी बीच एक दिन हमें भी माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समय धीरे-धीरे बढ़ता गया कि एक दिन -जिस प्रकार से भीषण गर्मी में झील का पानी सूख जाता है ,सागर में सुनामी आने पर सागर अपने विनाशकारी लहरों में बदल जाता है ,ठीक उसी प्रकार बिना बच्चों के धन दौलत होते हुए भी मेरा मन उदास है, एक बड़े घर में बच्चो के साथ रहने का जो सपना मैंने देखा था,वही घर चारों तरफ से मुझ से प्रश्न कर मेरे मन को नकारात्मक ऊर्जा से भर रहा था । मेरे बच्चे मेरे घर से हमें छोड़कर दूर चले गए है। जो ख्याति मेरे घर ने जीवन में हासिल की थी, बिना बच्चो के इस घर का एक -एक कण वंही विखर गया है जंहा से मैंने इन कणों को एकत्र किया था। हम दो प्राणी मधहोश पंछियो की भाँति एक शहर से दूसरे शहर ,दूसरे शहर से तीसरे शहर , तीसरे शहर.....निरन्तर हवा की गति के सामान आगे बढ़ते गए। किन्तु जिस प्रकार से हवा और पंछी आसमान को नहीं छू पाते, ठीक उसी प्रकार हम भी अपनी बढ़ती इच्छाओं को हासिल नहीं कर पाए। मोहवश अपने बच्चों के प्यार स्नेह में जीवन का यह सत्य हम भूल गए कि हमें जन्म देने वाले , हमारा लालन -पालन करने वाले भगवान के तुल्य माता-पिता भी है , जिन्हें अपना भविष्य सुरक्षित करने के उदेश्य से हम अकेला घर में छोड़कर दूसरे बड़े शहर में चले गए है। हमारा जीवन भी हमारे माता-पिता की तरह दुखदायी होने लगा । जिस प्रकार से ऋतुएँ बदल जाती है , हमारा जीवन भी बदल चुका था , हमारे इस माता पिता के बच्चों की भी शादी हो चुकी थी। हमने अपने बच्चों को जो रास्ता बताया था ,वह उस रस्ते को धीरे -धीरे भूलने' लगे। हमने अपने बच्चों के साथ रहने का जो सपना देखा था , हम यह माता पिता वह सपना टूटते हुए देखने लगे, और जब तक हमारी आँख खुलती ठीक हमारी भाँति मोहवश हमारे इस माता पिता के बच्चे हमें घर में दूर छोड़कर हमारे नाती -पोतो संग दूर विदेश चले गए। मोहवश अपने बच्चों के प्यार स्नेह में जीवन का यह सत्य हम भूल गए कि हमें जन्म देने वाले , हमारा लालन -पालन करने वाले भगवान के तुल्य माता-पिता भी है , जिन्हें अपना भविष्य सुरक्षित करने के उदेश्य से हम अकेला घर शहर में छोड़कर दूसरे बड़े विदेश में चले गए है। होम पेज पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें Click Here
माता पिता
एक माँ अपने बच्चे के लिए जीवन में हर प्रकार का संघर्ष उठाती है। माता-पिता अपने बच्चों के लिए चोट खा सकते है किन्तु ईमान नहीं बेच सकते। एक माता-पिता की हमेशा एक ही चाह होती है कि उनके बच्चे हमेशा अपना नाम रोशन करें, चाहे माता-पिता को अपना बलिदान ही क्यों न करना पड़े।एक माता-पिता अपने बच्चे का दुःख कभी नहीं देख सकते ,चाहे उनकी गर्दन ही क्यों न कट जाए।
गम
जब बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता को छोड़कर चले जाते है, तो अकेले बुजुर्ग माता-पिता कहते है कि कष्ट खाकर ,परिश्रम करके , मेरे पूरे तन में पीड़ा होने लगी है। जो सुख की जंग मैंने जीवन में जीती है , वह जंग आज हारकर धरती पर गिर गयी है। मेरे दुःख के आंसुओ से आज धरती माँ की अभिलाषा पूर्ण हो गयी है, क्योंकि मैंने भी इस माता पिता ने अपने उस माता-पिता के साथ यही किया था ,जो मेरे बच्चे मेरे साथ कर रहे है। यह माता-पिता उस माता-पिता को याद कर कह रहे है मोहवश अपने बच्चों के प्यार स्नेह में जीवन का यह सत्य हम भूल गए कि हमें जन्म देने वाले , हमारा लालन -पालन करने वाले भगवान के तुल्य माता-पिता भी है , जिन्हें अपना भविष्य सुरक्षित करने के उदेश्य से हम अकेला घर गांव में छोड़कर दूसरे बड़े शहर में चले गए थे । अटकती इस'बुजुर्ग माता-पिता की आवाज कह रही है कि तुझे बहुत पीड़ा दे गए हम, हे ! मेरे माता-पिता। इस' बुजुर्ग माता-पिता की रूकती हुई सांसो ने पहली बार महसूस किया कि तुझे भूखा -प्यासा छोड़ गए, हे ! मेरे माता-पिता । यह 'बुजुर्ग माता-पिता अपने मुरझायी हुए आँखों से देख रही है कि हमारे बच्चे जो कि स्वयं माता-पिता बन गए है। उनके बच्चे अथार्त बुजुर्ग माता-पिता के नाती -पोते हमारी तरह माता-पिता बनकर मोहजाल में न फंसकर , कुकृत न कर , जो दुःख हम इस बुढ़ापे में सहन कर रहे है इस 'बुजुर्ग माता-पिता के बच्चे वह दुःख न देखे। इस प्रकार से ईश्वर से दुआ मांगकर यह बुजुर्ग माता-पिता हमेशा -हमेशा के लिए सो गए । मोहवश अपने बच्चों के प्यार स्नेह में जीवन का यह सत्य हम भूल गए कि हमें जन्म देने वाले , हमारा लालन -पालन करने वाले भगवान के तुल्य माता-पिता भी है , जिन्हें अपना भविष्य सुरक्षित करने के उदेश्य से हम अकेला इस देश में छोड़कर दूसरे बड़े देश में चले गए है । माता-पिता के प्रति मोह , प्यार का सुख एक बच्चा क्षणभर के लिए ही समझता है , जबकि माता-पिता का मोह और प्यार हमेशा अपने बच्चों के साथ रहता है। जिसका अहसास उसे जीवन के अंतिम पड़ाव में महसूस होता है। जब उसके बच्चें उनकी धन दौलत होते है , तब वे स्वयं उन्हें अकेला छोड़कर चले जाते है। नारी पर हिंदी कविता Click Here
अंतिम वाक्य
इसलिए आप इस प्रकार की गलती न करना। और हमेशा अपने माता पिता की सेवा करना। चाहे परिस्थिति आपके प्रतिकूल ही क्यों न हो। हमेशा सेवा धर्म ही अपनाना ।
निष्कर्ष
बुजुर्ग माता पिता अथवा मनुष्य एवं प्राणी एक बच्चे की तरह होता है। उसकी जीवन भर की कमाई भी इस समय उसकी काम नहीं आती। इस समय उसे प्यार एवं सहारा की आवश्यकता होती है , न की धन दौलत की। इस उम्र में व्यक्ति अपने परिवार के साथ जीना चाहता है। वह शारीरिक रूप से अपनी दैनिक क्रियाये करने में भी असफल होता है। इस स्थिति में भी अगर हम अपने माता पिता की सेवा न करे तो हम मनुष्य कहलाने के लायक नहीं है। मनुष्य के रूप में हम केवल एक प्रतिबिम्ब ही कहलायेंगे। आश्रम में जी रहे माता पिता की सेवा सेवको द्वारा तो की जाती है किन्तु जिन्होंने जन्म दिया है मोहवश उन्हें अपनों के साथ रहना , अपनों के द्वारा की गयी सेवा से ही तृप्ती मिलती है। आजकल माता पिता को आश्रम में छोड़ देना एक फैशन बन गया है , जिससे समाज को गलत सन्देश पंहुच रहा है, जिससे कि मनुष्य के व्यवहार पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है। मनुष्य जीवन ईश्वर द्वारा प्रदान एक बहुमूल्य उपहार है। हमें अपने जीवन का सद्प्रयोग करना चाहिए। मानव कल्याण में अपना जीवन समर्पित कर देना चाहिए। हमारे कारण किसी भी प्राणी को दुःख न पंहुचे , हमें ऐंसा प्रयत्न करना चाहिए। हमें जन्म देने वाले माता पिता की सदैव मन से सच्ची सेवा तो करनी ही चाहिए साथ -साथ हमें अपना जीवन अपनी क्षमता के अनुसार समाज के कल्याण में भी समर्पित करना चाहिए। तभी हमारा जीवन सफल कहलायेगा। तभी मनुष्य की परिभाषा सार्थक सिद्ध होगी।
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सम्बन्ध
माता पिता पर हिंदी कविता में मेरे अपने निजी विचार है. आशा करता हूँ कि कविता एवं भावार्थ /सारांश /उद्देश्य आपको अच्छा लगा होगा, एवं आप कविता से प्रेरित हुए होंगे। यदि माता पिता पर हिंदी कविता प्रेरणादायक एवं उदेश्य पूर्ण है तो कृपया कमेन्ट जरूर करे एवं पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर भी करे। ताकि मैं और भी बेहतर कार्य कर सकू। आपकी कमेंट्स , आपके शेयर से मुझे हमेशा प्रोत्साहन मिलता रहता है। मैंने एक पारिवारिक कविता लिखी है , अगर आपको लगता है कि यह प्रत्येक परिवार तक पंहुचनी चाहिए तो पोस्ट को प्रत्येक परिवार तक शेयर जरूर कीजियेगा। जल्दी ही आपसे अगली पोस्ट में मिलूंगा। होम पेज पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें Click Here
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13 टिप्पणियाँ
Great work
जवाब देंहटाएंThank You so much
जवाब देंहटाएंBahut achchi kavita
जवाब देंहटाएंMata piya par sundar kavita
जवाब देंहटाएंतड़ियाल जी सच में बहुत सुंदर कविताएं हैं,गजब हैं keep it up
जवाब देंहटाएंVery nice poem tariyal ji
जवाब देंहटाएंVery wonderful poem
जवाब देंहटाएंGood work keep it up
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जी
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार कविता
जवाब देंहटाएंBahut hi shandat
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