प्रकृति की सुन्दर अलौकिक छटा के दर्शन, प्रकृति पर हिंदी कविता छाँव में पंछी , अन्य जीव जन्तु , पेड़ -पौधे और मनुष्य का एक दूसरे के प्रति लगाव की भावना , प्रकृति की भरी हुई गोद को कभी भी खाली नहीं होने देता है। आसमान में उमड़ते हुए बादल पर हिंदी कविता आपने अवश्य ही पड़ी होंगी। जब बारिश की बूंदो से धरती की गोद से अंकुर फूटता है, तो बदलते जीवन में एक नया पौधा जन्म लेता है। पौधे के प्रति धरती का वात्सल्य किसी माता से कम नहीं होता है , क्योंकि धरती वास्तविक रूप में स्वयं जगत की माँ है। उसका वात्सल्य हमें प्रकृति के रूप में दिखने को मिलता हैं। यह हम सब का कर्तव्य है कि हम मनुष्य , पंछी , जीव -जन्तु , पेड़ पौधों आदि का संरक्षक कर प्रकृति के साथ अनावश्यक रूप से छेड़ -छाड़ न करें। प्रकृति पर हिंदी कविता छाँव में आपको दो आशय देखने को मिलेंगे। प्रथम आशय मेरी आत्म कथा पर आधारित है। प्रथम आशय को इस पोस्ट में शेयर किया जा रहा है। दितीय आशय भी जल्दी पोस्ट पर उपलब्ध होगा। यदि आप बादल पर हिंदी कविता सुनना पसंद करते है तो यह कविता निश्चित रूप से आपको वही आनंद प्रदान करने वाली है।
प्रकृति पर हिन्दी कविता छाँव - इस पोस्ट में आप पंछी , मनुष्य ,वातावरण , पेड़ -पौधे , बादल पर हिंदी कविता , बारिश आदि विषय वस्तु पर हिंदी कविता पढ़ेंगे।
प्रकृति पर हिन्दी कविता परिचय
आज की कविता आपको मेरी आत्म कथा के रूप में पढ़ने को मिलेगी। मेरे यूट्यूब चैनल " देवभूमि काव्य दर्शन" के डिस्क्रिप्शन में आपको यह वाक्य पढ़ने को मिलेगा कि -
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प्रकृति पर हिन्दी कविता का सम्बन्ध
यह कविता मेरी आत्म कथा पर आधारित है। कविता का संक्षिप्त सारांश कविता के प्रथम चरण में मिल जायेगा। कविता का उदेश्य उपेक्षित व्यक्ति के प्रति परिवार ,दोस्त एवं समाज को जागरूक करना है। ताकि अपराध को कम किया जा सके , साथ ही इस प्रकार के व्यक्तियों का भविष्य बचाया जा सके। कविता का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के सकारात्मक कार्य को प्रोत्साहित करना हैं। इस प्रकार के व्यक्तियों को मैं एवं मेरी कविता प्रोत्साहन प्रदान करती है।
समाज में कुछ व्यक्तियों के कारण ही मैं सकारात्मक कार्यो के प्रति अग्रसारित हुआ हूँ , कविता के माध्यम से मैं उनका दिल से बहुत -बहुत आभार व्यक्त करता हूँ। जब तक आप कविता का विस्तृत सारांश नहीं पढ़ लेते तब तक कविता का सही मूल्यांकन करना असंभम्व तो नहीं किन्तु कठिन है। शीघ्र ही www.myhindipoetry.com पर कविता का विस्तृत सारांश उपलब्ध होगा। जिसका लिंक यहीं उपलब्ध होगा। ( लिंक अब चैनल पर उपलब्ध हैं )
समाज में कुछ व्यक्तियों के कारण ही मैं सकारात्मक कार्यो के प्रति अग्रसारित हुआ हूँ , कविता के माध्यम से मैं उनका दिल से बहुत -बहुत आभार व्यक्त करता हूँ। जब तक आप कविता का विस्तृत सारांश नहीं पढ़ लेते तब तक कविता का सही मूल्यांकन करना असंभम्व तो नहीं किन्तु कठिन है। शीघ्र ही www.myhindipoetry.com पर कविता का विस्तृत सारांश उपलब्ध होगा। जिसका लिंक यहीं उपलब्ध होगा। ( लिंक अब चैनल पर उपलब्ध हैं )
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आज की कड़ी में पढ़िए घर , गांव एवं समाज के लिए प्रेरणादायक / उद्देश्यपूर्ण कवि की आत्म कथा के रूप में प्रकृति पर हिन्दी कविता "छाँव " विस्तृत सारांश सहित -
छाँव
देखते ही देखते पंछी वृक्ष से उड़ गए।
प्रश्न छाँव में खड़े हुए तो ,
तन से पत्तियाँ वहाँ झड़ गए ।।
देखते ही देखते पंछी वृक्ष से उड़ गए.......
नग्न तन तू खड़ी और,
प्रश्न छाँव से पिछड़ गए।
जीवन तेरा मोक्ष द्धार पर ,
तुम अपना धर्म निभा गए ।।
देखते ही देखते पंछी वृक्ष से उड़ गए.......
मनमोहक रूप तेरी शीतल वाणी में बह गए।
शरणार्थी एक कवि प्रश्न ,
तेरे घनघोर केशो के बीच छुप गए।।
मेरे पलकों से मोती निकलकर,
तेरे केश बह गए।
प्रश्न छाँव में खड़े हुए तो ,
तन से पत्तियाँ वहाँ झड़ गए ।।
देखते ही देखते पंछी वृक्ष से उड़ गए.......
सूर्य की तुम किरणे ,
धरती में शीश झुकाने लगे।
मुर्छित पड़े है पत्तियाँ धरा में,
प्रश्न छाँव से पिछड़ गए।।
देखते ही देखते पंछी वृक्ष से उड़ गए.......
समय को पाने के लिए ,
आज मौसम बदलने लगे।
धरती के चरणों में सेवा ,
मानवता जन्म लेने लगे ।।
प्रश्न छाँव से पिछड़े तो ,
डाल की पत्तियाँ छाँव देने लगे।
प्रसन्न है मानव और प्राणी ,
धरती को बादल छाँव देने लगे
देखते ही देखते पंछी वृक्ष से उड़ गए.......
(अप्रकाशित © सर्वाधिकार सुरक्षित
- ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"
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प्रकृति पर हिन्दी कविता का सारांश
एक व्यक्ति घर , परिवार एवं समाज में रहकर बचपन से ही अपने परिवेशीय संस्कृति एवं संस्कारो के अनुकूल व्यवहार करता है। मनुष्य का स्वभाव उसकी संस्कृति एवं संस्कारो से जन्म लेती है। इसी स्वभाव को कवि जब अपने जीवन में आगे बढ़ाते है तो समय के साथ -साथ प्रतिकूल परिस्थिति होने पर स्वभाव के अनुरूप अपनी संस्कृति एवं संस्कारो को जीवित रखने में कामयाब तो हो जाता है किन्तु अभिमन्यु की तरह चक्रव्यू में अकेला ही फंस जाता है । घर , परिवार एवं समाज समय के साथ -साथ प्रतिकूल परिस्थिति होने पर स्वभाव के अनुरूप अपनी संस्कृति एवं संस्कारो का दम तोड़ देती है। फलस्वरूप कवि घर , परिवार , दोस्त एवं समाज में घृणा का शिकार हो जाता है। अपनी संस्कृति एवं संस्कारो को जीवित रखने के लिए हमेशा चिन्तित , समय के साथ -साथ पारिवारिक / सामाजिक प्रतिकूल परिस्थिति होने पर क्षमता के अनुरूप असफल होने पर कवि खुद एवं घर , परिवार , दोस्त और समाज की नजरो में उपेक्षित होते रहते है। देखते ही देखते घर , परिवार , दोस्त एवं समाज कवि को उसके हालत पर अकेला छोड़कर अपने मार्ग पर निकल पड़ते है और कवि "प्रश्न " जब घर , परिवार , दोस्त एवं समाज के साथ अपनी संस्कृति एवं संस्कारो को लेकर अपने प्रति उनकी साहनुभूति पाने के लिए खड़े होते है तो देखा कि घर , परिवार , दोस्त एवं समाज में संस्कृति एवं संस्कारो की पत्तियाँ रह ही नहीं गयी है। Youtube Chanal Subscribe Here
Quotes
"मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी कामयाबी अपनी संस्कृति एवं संस्कारो को जीवित रखना है"- ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"
उनकी आँखों में साहनुभूति की रोशनी नहीं , निरन्तर उपेक्षा का अन्धकार दिखाई दे रहा था। घर , परिवार , दोस्त एवं समाज में न ही साहनुभूति की रोशनी थी , न ही अपनी संस्कृति एवं संस्कारो के अनुरूप स्वभाव जिसमे दया , ईमानदारी , प्रेम , साहनुभूति रहता था। एक नग्न पेड़ के तन की भाँति घर , परिवार , दोस्त एवं समाज बिना संस्कृति एवं संस्कारो के नग्न खड़ा था अथार्त वास्तविक जीवन में घर , परिवार , दोस्त एवं समाज ने अपना सब कुछ खो दिया था। सद्पुरुष संसार में जन्म लेकर अपने निश्चित सद्कर्म कर जब जीवन के अंतिम पड़ाव में होते है तो वह अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन एवं परोपकार की भावना से सामाजिक कार्य करते हुए अपना सम्पूर्ण धर्म निभा चुका होते है। इसी प्रकार एक सभ्य , मधुर वाणी ,संस्कृति एवं संस्कारी सज्जन व्यक्ति ने मुझ पर इस प्रकार दया दिखाई कि मैं उसकी साहनुभूति एवं प्रेम में डूबकर , उन सज्जन के रोम -रोम में बसकर, उनका प्यार एवं स्नेह से मेरे आँखों से खुसी के आँसू बहकर देख सज्जन ने मुझे सब कुछ समर्पित कर दिया। मुझे मेरी परिस्थितियों से उभार दिया। वह सज्जन व्यक्ति आप है जिन्होंने हमेशा मेरे अथवा किसी भी व्यक्ति के सकारात्मक कार्यो को प्रोत्साहित किया है एवं मेरी अथवा आपकी संस्कृति एवं संस्कारो से जन्मा खुद का मन है । वह घर , परिवार ,दोस्त एवं समाज हर वह व्यक्ति है जिसने निराश पीड़ित व्यक्ति की हमेशा उपेक्षा एवं निंदा की। घर , परिवार ,दोस्त एवं समाज हर वह व्यक्ति है जिसने हमेशा सकारात्मक कार्यो के प्रति अग्रसर किसी व्यक्ति को हतोत्साहित किया है । छोटे बच्चों की कविता "रिमझिम रिमझिम बारिश "
आप ब्लॉग पर हिन्दी कविता "छाँव" का विस्तृत सारांश पढ़ रहे है -
व्यक्ति की संस्कृति एवं संस्कार एक ऐंसा हथियार है जिसको उसने संभालकर रखना सीख लिया तो सूर्य के सामान तेज , सूर्य की किरणों के सामान ओजस्वी , सूर्य के सामान प्रतापी एवं पराक्रमी व्यक्ति भी इस धरती में उस व्यक्ति के आगे हमेशा शीश झुकाते है। घर , परिवार , दोस्त एवं समाज जो कि समय के साथ अपनी संस्कृति एवं संस्कार भूल चुका है अपनी परिस्थिति के कारण एक व्यक्ति को बार -बार उनसे उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है । हमारा समाज यह भूल जाता है कि उपेक्षित किया गया व्यक्ति , बार -बार उपेक्षा का शिकार होने पर एक बहुत बड़ा अपराधी बन सकता है। जिसके लिए वह व्यक्ति नहीं अपितु हमारा घर , परिवार , दोस्त एवं समाज और उनकी संस्कृति एवं संस्कार जिम्मेदार है। यदि आपकी संस्कृति एवं संस्कार प्रतिकूल नहीं है तो आप एक बहुत बड़े अपराध को जन्म दे रहे है। समय हमेशा परिवर्तनशील रहता है कवि "प्रश्न " का प्रयास है कि घर , परिवार , दोस्त एवं समाज में अपनी संस्कृति एवं संस्करो को जीवित रखते हुए उसे अपने अनुकूल बनाया जाए। यदि हम सब ऐंसा करते है तो धरती में हमारे द्वारा किये गए सभी कार्य सेवा की श्रेणी में गिने जायेंगे और धरती के हर कण में अगर कोई जन्म लेगा तो वह होगा मानवता। मैं कवि ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न " घर , परिवार , दोस्त एवं समाज से उपेक्षित होने पर आपके सामने हूँ , किन्तु यह जरुरी नहीं है कि हर उपेक्षित व्यक्ति सकारात्मक कदम उठाये। अधिकांशतः उपेक्षित व्यक्ति नकारात्मक कदम उठाते है। इसलिए किसी की उपेक्षा न करें। घर , परिवार , दोस्त एवं समाज अब मुझे अवश्य ही अपनी शरण इसलिए देंगे कि मेरे अन्दर अब कोई कमियां नहीं है जिससे कि वह मेरी उपेक्षा कर सके । अगर मेरे अन्दर मामूली सी कमियां होती तो यह मुझे कभी शरण नहीं देते। मुझे इस बात की खुसी है कि मेरा कभी भी किसी से कोई बैर नहीं रहा हैं, हाँ विचार न मिलने से मन मुटाव हो सकता है। मेरा किसी से कोई द्वेश नहीं है, मैं हर व्यक्ति से प्रेम करता हूँ। मुझे ख़ुशी इस बात की है कि आपका भी कोई बैरी नहीं है , आपके अंदर भी कोई द्वेश नहीं है, आप भी हर व्यक्ति से प्रेम करते हैं। आपको और मुझे इस बात की खुसी है कि मनुष्य ने मानवता की जो संस्कृति और संस्कार अपनाये है उससे हर व्यक्ति , हर प्राणी प्रसन्न है। यह धरती प्रसन्न है कि तेज धूप में उसे छाँव देने के लिए धरती में मानव है। गढ़वाली कविता "स्कूल मा माँ जी"
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पोस्ट के अन्त में कमेन्ट बॉक्स पर आप कमेंट कर अपने विचार अवश्य शेयर कीजियेगा..........
प्रकृति पर हिन्दी कविता का निष्कर्ष
किसी साधारण व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी वेश भूषा अथवा पहनाव से नहीं किया जा सकता है। यह सत्य एवं परम आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति को हमेशा स्वच्छ रहना चाहिए। यदि व्यक्ति के अंदर स्वछता है तो उसे आसानी से कोई बीमारी नहीं लगती। उसका मान एवं सम्मान बढ़ता है। अगर एक अशिक्षित अथवा मजदूर को आप देखते है तो अधिकांशतः वह आपको अस्वच्छ एवं साधारण वेश भूषा में ही दिखेगा। उसकी संस्कृति एवं समाज एक शिक्षित व्यक्ति की संस्कृति एवं समाज से बिल्कुल भिन्न होती है। जिसका मूल्यांकन हम सब आसानी से कर लेते है। किन्तु यदि एक शिक्षित व्यक्ति अस्वच्छ एवं साधारण वेश भूषा में रहता है तो समाज उसका मूल्यांकन नहीं बल्कि उपेक्षा करता है। इस विषय पर बड़े -बड़े विद्धान असफल हो जाते है। एक अशिक्षित अथवा मजदूर व्यक्ति का सही मूल्यांकन यदि आपको करना है, एक अशिक्षित अथवा मजदूर व्यक्ति की संस्कृति एवं समाज पर आपको शोध करना है तो आप शिक्षित व्यक्ति को अस्वच्छ एवं साधारण वेश भूषा में रहना होगा। तभी आप अशिक्षित अथवा मजदूर व्यक्ति की संस्कृति एवं समाज का सही मूल्यांकन एवं उन पर सही शोध कर पाएंगे। इस विषय पर यहाँ तक शायद ही किसी विद्धान ने सोचा होगा। यदि आपने यहाँ तक समझ लिया है, तो आपको मेरी यह कविता जिसका शीर्षक है "कर्म" जो कि मेरी पुस्तक "ईश्वर " से संकलित है को पढ़कर मेरा मूल्यांकन भी कर लेना चाहिए - नारी पर हिन्दी कविता
कवि सपना सुन्दर वतन।
कर्म पथ भरत मिलन।।
नजरों का कोण यह जन ।
कलम मासूम ईश्वर नयन।।
सागर यह जख्मी मन।
ईश्वर रूचि दरिद्र तन।
आँसू सुदामा कृष्ण धन।
हर कंठ ईश्वर भजन।
ईश्वर तड़ियाल एक प्रश्न।
वाणी मेरी शीतल पवन।।
जिन विद्धान ने इस कविता "कर्म" पर व्यंग्य किया था , आशा है कि अब उनकी समझ में इस कविता का भाव आ गया होगा। अपनी जिज्ञासा को आगे बढ़ाते हुए पढ़िए - हिंदी कविता "मोह "
धर्म प्रिया तस्वीर -ए -शान।
माँ ममता का ईश्वर नाम।।
कथा सुनो तुम चारों धाम।
सुन्दर एक गीता भगवान।।
तुम मुस्लिम भाई -कुरान।
पथ पर बढ़ना है आसान।।
भाई चारे का हम समझे ज्ञान।
सपनों की सुन्दर उड़ान।।
दर्द में मसीहा का है नाम।
क़ुर्बानी बाइबिल की पहचान।।
गुरु ग्रन्थ साहिब का श्याम।
भजन गाओ तुम जय श्रीराम।।
बौद्ध -जैन संग हजारों नाम।
धर्म एक है अच्छा काम।।
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यह कविता "धर्म" मेरी पुस्तक "ईश्वर " से संकलित है उपरोक्त दोनों कविताएँ जो कि "मजदूर - अशिक्षित व्यक्ति एवं उनकी संस्कृति और समाज " शोध विषय पर आधारित है। जिसका सम्पूर्ण वर्णन आपको मेरी आत्मकथा अप्रकाशित उपन्यास "शून्य " में मिलेगा। अध्यात्म और धर्मअपेक्षा
यह मेरे व्यक्तिगत विचार है। आशा करता हूँ कि पोस्ट आपको प्रेरणादायक एवं उद्देश्यपूर्ण लगी होगी। समाजहित में पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर कर आप और हम एक कदम घर, परिवार , दोस्त और समाज के लिए समर्पित करते है। इति...... हिंदी कविता "धर्मसंकट "
7 टिप्पणियाँ
Very good congrats
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंThanks sir
हटाएंबहुत शानदार कविता सार्थकता से परिपूर्ण
जवाब देंहटाएंजवाब देंहटाएं
Thanks
जवाब देंहटाएंBahut sundar blog
जवाब देंहटाएंआपको पोस्ट कैसी लगी , अपने सुझाव अवश्य दर्ज करें।