हिन्दी दिवस की बहुत -बहुत शुभकामनाओं के साथ संयुक्त रूप से प्रस्तुत है कवि ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न ", कवयित्री अनीता ध्यानी , कवयित्री अंजलि डुडेजा ,कवयित्री विमला रावत , कवि रवि बिष्ट एवं कवयित्री सन्नू नेगी की हिन्दी दिवस पर बेहतरीन रचना।
हिन्दी पर पहली कविता
आज मैं बन गयी हूँ दुल्हन।हिन्दी हूँ मैं हिन्द हे ! वतन।।
मिला है आज कवि प्रश्न।
बोल है हिंदी कविता सृजन।।
आज मैं बह रही हूँ पवन।
कवियों में त्यौहार का चमन।।
खुसबू मेरी कवी तू निर्धन।
बन जाओ आज हिंदी रत्त्न।।
तिलक लगाओ मुझे उठाओ चन्दन।
मैं दिल , भारत माँ की तू धड़कन।।
गीत में मेरी बच्चों की मुस्कान।
जन-गण -मन मैं राष्ट्रगान।।
मातृभाषा मई देश शान।
लता की आवाज मेरी पहचान।।
विदेशी धरती अटल मेरा ज्ञान।
मेरे खातिर करना बलिदान।।
ऋषियों की बोली यह हिंदुस्तान।
हर दिल में हिंदी मेरा अभिमान।।
मेरा इतिहास सदियों पुराना।
कवि मुझे तुम आज सँवरना।।
सरल व सहज हिन्दी तू कलात्मा।
भारतीय संस्कृति की आत्मा।।
हिंदी में तू है परमात्मा।
कविता में तेरी कवि की आत्मा।।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"
ग्राम -जगसारी
कोट ब्लॉक
जिला पौड़ी गढ़वाल
मैं हिन्दी हूँ
दिलों में तुम्हारे मैं जिन्दी हूँ।
भारत के भाल पर सजी
साहित्य की बिंदी हूँ
मैं हिन्दी हूँ।
सिमट रही हूँ गंगा सी
यमुना सी मैं सहमी हूँ।
नहीं फटकता कान्हा जहां
मैं वो कालिंदी हूँ।
मैं हिन्दी हूँ।
मुख मोड़ लिया यूँ मुझसे तुमने
जैसे बबूल की खेती हूँ
देखो मुड़कर मेरी ओर
मैं आंगन की तुलसी हूँ।
मैं हिन्दी हूँ।
फैली जो आग अंग्रेजी की
मैं उसमे ही झुलसी हूँ।
अभिवादन से भी अपदस्थ हुई
मैं दीप्ति हीन सी योगी हूँ।
मैं हिन्दी हूँ।
हर पल में था वास मेरा
अब एक दिवस में सिमटी हूँ
कभी 2 ख्यालों में आऊँ
मैं वो यादों की हिचकी हूँ।
मैं हिन्दी हूँ
मैं हिन्दी हूँ।।
- कवयित्री अनीता ध्यानी (अनि)
रा0 प्रा0 वि0 देवराना
वि0 क्षे0 यमकेश्वर
हिन्दी पर तीसरी कविता
भारतमाता के मस्तक की शोभा,
माथे की बिंदी है हिन्दी,
सारे देश की भाषा है
और,
हमारी मातृभाषा है हिन्दी।
यह हमारी पहचान है,
यह हमारा सम्मान है,
यह हमारा अभिमान है,
यह हमारा ईमान है।
हिंदू संस्कृति की पहचान ,
हिन्दी,संस्कृति का सम्मान,
हिन्दी का हिंदुस्तान,
हिंदुस्तान की हिन्दी
हिन्दी हिंदू हिंदुस्तान।
आओ भाई आओ बहना,
आओ हिन्दी को अपनायें,
अपनी एक पहचान बनायें।
जय हिन्दी जय हिंदुस्तान,
मेरा भारत सदा महान।
जय हिंद
- कवयित्री अंजलि डुडेजा ,
रा.प्रा.वि. नौगांव -2 ,
विकास खण्ड -कल्जीखाल
हिन्दी पर चौथी कविता
हिंदी की मैं निवासी ,
हिन्दुस्तान है देश प्यारा।
देवनागरी लिपि है जिसकी।
वो प्यारी भाषा हिंदी है मेरी,
देश की शान -बान है ये ,
राजभाषा का सम्मान तो मिला
लेकिन काज व ना स्थान मिला।
अफ़सोस अपनों में ही ये गैर हुई
क्योंकि
तन तो आजाद हुई ,
पर मन से है गुलाम अभी।
अग्रेजो की अंग्रेजी को ही देते है महत्व अभी ,
चाहते हो अगर मान बढे हिंदी का ,
तो मन से इसे स्वीकार करो।
बनाओ इसे अपने काम की भाषा ,
अपने अभिमान की भाषा।
अपने सम्मान की हो भाषा,
अपने विकास की भाषा।।
अगर भुला दिया तुमने इसको ,
ले खुद की पहचान मिटा बैठोगे।
फिर कितने भी अभियान चलाओ ,
पतझड़ सा इसको और खुद को पाओगे।।
वो प्यारी हिंदी मातृ भाषा है मेरी ,
सिर्फ सपनो में ही कह पाओगे।
देश की सभ्यता संस्कृति है ये ,
नागरिको की पहचान और प्राण है ये।
प्रगति की इकाई और आधार है ये ,
भाषा भावो की अभिव्यक्ति है,
अनुभवों की दस्ता है।
ज्ञान और चिंतन का द्वार है। .
-विमला रावत
रा.उ.प्रा.वि. नैल गुजराड़ा
विकास खंड यमकेश्वर
हिन्दी पर पाँचवी कविता
दिल की अभिव्यक्ति है हिंदी।
प्यार की मिठास है हिंदी।।
एक दूसरे को जोड़ती है हिन्दी।
रिश्तो को संवारती है हिन्दी।।
कोयल की बोली सी है हिंदी।
कानो में मिश्री सी घोलती है हिंदी।।
हिंदुस्तान को एक धागे में पिरोती है हिंदी।
अम्बानी की भी है हिंदी।।
और मुझ जैसे न चीज की भी है।
अहमद की भी है हिन्दी।।
मीनाक्षी की भी है हिंदी।
दलजीत की भी है हिंदी।।
डेविड की भी है हिंदी।
गांव -गांव की है हिंदी।।
हर प्रान्त की है हिंदी।
भारत की है यह हिंदी।।
पूरे जहाँ की है हिंदी.........
- रवि बिष्ट
रा0 प्रा0 वि0 चोपड़ा मल्ला
वि0 क्षे0 यमकेश्वर
हिन्दी पर छटवीं कविता
कितनी सुंदर कितनी प्यारी
राष्ट्र भाषा हिंदी हमारी।
जनजन को बांधे रखती,
एकता का बन्ध बनाती।
भारत की पहचान है हिंदी,
जैसे माथे पर हो बिंदी।
सुंदरता का बोध कराती,
देश को है अभिमान जताती।
हिमालय सी ऊंची है हिंदी,
नदियां-पर्वत ,घाटी हिंदी।
सावन की फुहार हिंदी,
मघुमसों का फाग है हिंदी।
दीवाली के दीप है हिंदी,
अबीर-गुलाल और होली हिंदी।
लोहड़ी का पर्व है हिंदी,
ईद का चांद भी हिंदी।
पूरब से पश्चिम तक हिंदी,
कश्मीर से कन्याकुमारी।
गंगा सी पावन है हिंदी,
भारत की ये भाषा हिंदी।
आओ इसका मान बढाएं,
व्याकरण से पहचान कराएं।
उच्चारण में सीधी - साधी,
सरल सुगम है पूरी - आधी।
जैसी बोली जाती है यह,
लिखी भी वैसी जाती है यह।
आओ सब मिल प्रयत्न करें,
हिंदी में ही सब काम करें।
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जीवन -सफर की धूप -छाँव में
पग बढ़ा सुख- दुःख के साये में
बन पथिक निकल पड़े राह में हम
स्वर्णिम भविष्य बनाने की तलाश में।।
-कवयित्री बिमला रावत
"जीवन सफर" हिंदी कविता पढ़े -Click Here
जीवन की गहराई में जाकर,
कुछ क्षण तुमसे बात करके,
पूछ लिया हाल सखा तुम्हारा।
बचपन के तुम सखा पाकर,
कसूर दिल का समझा करके,
गुजरा समय कवि असहाय तुम्हारा।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
"सखा" पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे -Click Here
मैं जन्मी पर, अजन्मी ही रही।
गर्भ में थी , गर्भ में ही रही।
जन्मी भी मैं, पर जन्मी ही नहीं।
जो जन्मी, बेटी थी वो
बहिन थी, पोती भी थी वो।
मां के गर्भ से ,
- कवयित्री अनीता ध्यानी
"अजन्मी" पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -Click Here
मोह जाल में फँसकर हम ,
भूल गए जीवन की शान ।
जन्मदाता मेरे पालनकर्ता तुम ,
हम छोड़ गए अपना भगवान ।।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न "
माता -पिता पर सम्पूर्ण सारांश सहित पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -Click Here
उम्र के उस दौर में सफर कर रही हूँ।
जहाँ परिभाषा स्वयं की गढ़ रही हूँ।
बहुत देख चुकी जमाने की नजर से;
अपनी नजर से खुद को अब देख रही हूँ।
-कवयित्री सुनीता ध्यानी
"समय" पर पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें -Click Here
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2 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुन्दर कविताएं हैं l
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविताएं।💐👏👏👏
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