तोत्तो चान पुस्तक की समीक्षा | Totto chan Book Review | अनीता ध्यानी
"तोत्तो-चान" मेरे नजरिये से" ......
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परिचय - तोत्तोचान पुस्तक की लेखिका जापान की तेत्सुको कुरोयानगी हैं। इस पुस्तक का अनुवाद किया है पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा जी ने इसे चित्रों से सजाया है चिहिरो इवासाकी जी ने। पुस्तक का प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया द्वारा किया गया है। इस पुस्तक में वर्णित विद्यालय "तोमोय"शुरू से अंत तक बालमनोविज्ञान से आच्छादित है। हेडमास्टर सोसाकु कोबायाशी एक जाने माने शिक्षा विद हैं, वे बच्चों के अंतर्द्वंद और मनोदशा को पढ़ने में सफल रहे हैं। इसका कारण उनके द्वारा किये गए अध्ययन और उनका बच्चों से अगाध प्रेम रहा है। इस पुस्तक का शीर्षक "तोत्तोचान", इसमें वर्णित घटनाओं के अनुकूल एक दम सटीक बैठता है। क्योंकि यह पुस्तक तोतोचान के शरारती लड़की से एक जिम्मेदार लड़की बनने की घटनाओं से ओतप्रोत है। इसका शीर्षक अगर "हेडमास्टर साहब" या "तोमोय, एक विद्यालय" भी होता तो भी अनुचित न होता। लेखिका द्वारा एक ऐसे अनुपम स्कूल का वर्णन किया गया है। जिसमें सृजनात्मक शिक्षा दी जाती है।
लेखिका - पुस्तक का हिंदी अनुवाद सरल,सहज और प्रवाहपूर्ण भाषाशैली मे किया गया है। बहुत बारीकी से पात्रों के चरित्रों को उभारा गया है। पुस्तक को पढ़ते हुए चलचित्र आंखों से होकर गुजरते रहते हैं। शुरू में लगता है कि किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा पुस्तक लिखी गयी है। किंतु उपसंहार आते आते पता चलता है कि लेखिका ही वह नन्हीं तोतोचान है। जिससे पाठक को पता चलता है कि लेखिका और कोई नहीं बल्कि स्वयं तोतोचान ही है। पुस्तक में लगभग 60 शीर्षकों के अंतर्गत लेखिका द्वारा अलग अलग घटनाओं का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि हर एक घटना अपने आप मे एक पूरी कहानी लगती है। कहानी की शुरुआत पुराने विद्यालय से आई तोतोचान की शिकायतों से प्रारम्भ होती हैं। और अमेरिका द्वारा की गयी बमबारी में तोमोय के जल जाने के कई वर्ष बाद तोतोचान के कक्षा 1 के साथियों की सामाजिक स्थिति को दर्शाते हुए खत्म होती है। यह पुस्तक सुख,दुख, उल्लास,तरंग हर तरह के रंगों से भरी पड़ी है। लेखिका के अनुसार "तोमोय" में रखी गयी आधार शिला वाले अधिकांश बच्चे अच्छा सामाजिक और प्रतिष्ठित जीवन जी रहे हैं।
सफलता - असफलता - इस पुस्तक में एक नन्ही सी बच्ची की मासूमियत और चंचलता को दर्शाया गया है। तोतोचान कक्षा 1 में जिस विद्यालय में प्रवेश लेती है। वहां की शिक्षिका उसकी चंचलता से परेशान होकर उसकी शिकायत उसकी माँ से करती है। शिक्षिका इस बात से परेशान है कि तोतोचान बार बार अपनी मेज को खोलती और बंद करती है। जब ऐसा करके थक जाती है तो खिड़की में जाकर खड़ी हो जाती है और सड़क पर चलते साजिंदों को बुलाती रहती है,कभी चिडियों से बातें करती है। शिक्षिका उसके अंदर छुपे मानवीय पहलुओं,संवेदनशीलता और भोलेपन को नहीं देख पाती और तोतोचान को स्कूल से निकाल दिया जाता है।यह विडंबना ही है कि जब एक शिक्षक, शिक्षक होकर भी बच्चे के अंदर मौजूद ऊर्जा ,जिज्ञासा और क्षमताओं को सही दिशा नहीं दे पाते तो उसकी असफलता का श्रेय बच्चे के सर मढ दिया जाता है। और फिर वही होता है जो तोतोचान के साथ हुआ। किस्मत से उसकी मां समझदार और संवेदनशील थी । वो तोतोचान को नहीं बताती कि उसे स्कूल से निकाल दिया गया है। बहुत खोजबीन के बाद उसे तोमोय प्राथमिक शाला ले जाती है। यहां से तोतोचान के जीवन में नया मोड़ आता है। जिससे उसकी अच्छाइयां उभर कर आती हैं।
अच्छाई एवं बुराई -तोतोचान एक निर्मल मन की बालिका है। उसे कहीं कोई बुराई नहीं दिखाई देती। पुराने विद्यालय में जो शिक्षिका उसे सजा दिया करती नए विद्यालय जाकर वह उनकी सुंदरता का ही बखान करती। तोतोचान संवेदनशील और दयालु बालिका थी, उसकी कक्षा का यासुकीचान पोलियो के कारण अच्छे से चल नहीं सकता था । पेड़ पर चढ़ने की तो सोचता भी नहीं था। "तोमोय"',में यासुकीचान को छोड़कर,सभी बच्चों के अपने अपने पेड़ थे ।
कोशिश - तोतोचान का भी एक पेड़ था । उसने सीढ़ियां लगाकर यासुकीचान को बड़े परिश्रम से खींचकर अपने पेड़ पर चढ़ाया। इतना परिश्रम उसने केवल यासुकीचान को खुश रखने के लिये किया। सामान्य दृष्टि का व्यक्ति इसके पीछे के उद्देश्य को देखे बिना इसे तोतोचान की भारी भूल मानकर दण्डित भी कर सकता है । लेकिन कोबायाशी जी ने ऐसा कुछ नहीं किया। एक बार तोतोचान अपने कुत्ते रॉकी के साथ भेड़िया भेड़िया खेल रही होती है। खेल खेल में ही वह तोतोचान का कान काट देता है। उसका कान लटक जाता है। वह रोने लगती है लेकिन अपने मम्मी पापा को रोते रोते कहती है रॉकी को कुछ मत कहना। उसे डांटना नहीं। क्योंकि उसे डर होता है कि मम्मी पापा रॉकी को गुस्से में कहीं घर से बाहर न कर दें। उसे अपने कान से ज्यादा रॉकी की फिक्र थी।
वह एक निर्भीक बालिका थी जो अपने शिक्षक और विद्यालय से बहुत प्रेम करती थी।
निर्भीक - जब कुछ दूसरी स्कूल के बच्चों ने उसके विद्यालय तोमोय के लिए कहा, तोमोय स्कूल घटिया है ,अंदर से भी बाहर से भी घटिया है। तब तोतोचान को बहुत गुस्सा आया और वह उन बच्चों के पीछे अकेले ही तब तक भागी जब तक वे किसी गली मे गायब न हो गए।
जिज्ञासा - हर बच्चे की भांति वह भी एक जिज्ञासु लड़की थी जब तोमोय में रेलगाड़ी का नया डिब्बा आना था । उस दिन बच्चो की जिज्ञासा के चरम को देखा जा सकता है। इसप्रकार की कई घटनाएँ पुस्तक में वर्णित हैं। जिनसे मालूम पड़ता है कि तोतोचान कितनी मासूम,चंचल,सम्वेदनशील, दयालु, प्रेमी,बुद्धिमान,जिज्ञासु और हमेशा दूसरों का ध्यान रखने वाली प्यारी लड़की थी। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सोचने वाली बात ये है कि जिस लड़की को एक विद्यालय यह कह कर निकाल देता है कि उसके कारण पूरा विद्यालय गड़बड़ा जाता है। तोमोय प्राथमिक शाला में उसके अंदर इतने सारे अच्छे गुणों का विकास कैसे हुआ ? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके अंदर ये सब गुण पहले से ही विद्यमान थे ?और आवश्यकता थी केवल उन्हें तरासने की ? जो काम सोसाकु कोबायाशी कर सके वह काम हर शिक्षक क्यों नहीं कर सकता ? शायद इसके लिए अभी बहुत आत्ममंथन की जरूरत है। विद्यालयों को रेलगाड़ी जैसा बना देने मात्र से वो तोमोय नहीं बन जायेगा। उसके लिये पूरा वातावरण, पूरा ढांचा बदलाव की मांग करता है। इस बदलाव के लिए सोसाकु कोबायाशी की कार्यप्रणाली को जानना, आत्मसात करना और उसमें देश काल परिस्थितियों के अनुसार बदलाव करके ही उसे कार्यरूप दिया जा सकता है।
प्रदर्शन - "तोमोय " विद्यालय के संस्थापक और हेडमास्टर सोसाकु को बायाशी बच्चों से अथाह प्रेम करते थे। वह बच्चों के साथ बाल मनोविज्ञान सुलभ व्यवहार करते नजर आते हैं। जिस चंचल लड़की को एक विद्यालय यह कहकर निकाल देता है कि इसके व्यवहार के कारण पूरे विद्यालय की व्यवस्था गड़बड़ा जाती है। उसी लड़की को हेडमास्टर साहब एक वर्ष के अंदर ही एक जिम्मेदार लड़की बना देते हैं। वे बच्चों के हर कार्य पर नजर रखते हैं लेकिन उन्हें खुद करके सीखने देते हैं। एक बार जब तोत्तोचान ने कूड़ेदान में अपनी कोई चीज ढूंढते हुए उसका सारा कूड़ा बाहर बिखेर दिया था।तभी हेडमास्टर सोसाकु कोबायाशी उधर से निकले उन्होने तोतोचान से कहा" जब तुम्हारा काम हो जाय तो फिर कूड़ा कूड़ेदान में वापस डाल देना। यहां तक कि मल की टँकी में तोतोचान का बटुआ गिर जाने पर वह पूरी टँकी का मल बाहर निकाल देती है।
फिर भी हेडमास्टर जी उसे डांटने के वजाय कहते हैं जब तुम्हारा बटुआ मिल जाय तो फिर इस मल को वापस डाल देना। तोतोचान को बहुत अच्छा लगा कि हेडमास्टर साहब ने उसे औरों की तरह डांटा नहीं। लेकिन टँकी में मल वापस डालते डालते वह थक जाती है और अपनी भूल भी समझ जाती है। हेडमास्टर जी एक धैर्यवान व्यक्ति थे। जब तोतोचान "तोमोय"में पहली बार आती है तो हेडमास्टर साहब उसे लगातार लगभग चार घण्टे तक सुनते हैं। उसके बाद भी वे उसे आगे और कुछ बोलने को कहते हैं । तब तोतोचान अपनी फ्रॉक के बारे में उन्हें पूरी बात बताती है कि यह उसने आज क्यों पहनी है,उसकी बाकी फ्रॉक कैसे फट जाती थी। सब कुछ बताने के बाद वे तोतोचान से कहते हैं "अब तुम तोमोय की हुई।" वे बच्चों के प्रति बहुत संवेदनशील व्यक्ति थे। खेलो का आयोजन इस तरह से करते कि विकलांग या शारीरिक रूप से कमजोर बच्चा भी जीत सके। यही उन्होंने छोटे कद के ताकाहाशी के लिए 3 नवम्बर को होने वाले खेलों में किया। जिससे उसका आत्मविश्वास कम न हो।वे बच्चों का सर्वांगीण विकास चाहते थे। इसीलिए वे उनके लंच बॉक्स रोज चेक करते थे।वे टिफिन में बच्चों से "कुछ समुद्र से और कुछ पहाड़ से "लाने को कहते।जिसके टिफिन में कोई चीज कम होती तो उसके टिफिन में अपनी रसोई से वह चीज डाल देते। जिससे उन्हें शाकाहारऔर मांसाहार दोनों पोषण मिल सके । कोबायाशी पेरिस के डेलक्रोज से ताल व्यायाम सीख कर आये थे।जिसका उपयोग उन्होंने प्राथमिक विद्यालय में किया। जिससे बच्चों में कल्पनाशक्ति व रचनात्मकता का विकास होता था। वे समसामयिक शिक्षा के आलोचक थे। क्योकि उसमे लिखित शब्दों पर जोर था। उनका मानना है कि ऐसा करने पर बच्चे का ऐन्द्रिक बोध,उसकी सहज ग्रहणशीलता और अंतर्मन की आवाज सब क्षीण हो जाते हैं। बच्चों के अंदर खेती और किसान के प्रति सम्मान जगाने के लिए खेती की शिक्षा ,खेत मे किसान द्वारा ही दिलाई जाती। भोजन करते समय भोजन मन्त्र के स्थान पर हेडमास्टर जी का बनाया गीत गाते" चबाओ चबाओ ठीक से चबाओ जो कुछ तुम खाओ....."।
जिससे बच्चों को पता था कि भोजन को अच्छे से चबाना चाहिए और क्यों चबाना चाहिए।
खेल दिवस पर "तोमोय" में इनाम में सब्जियां दी जाती जिससे बच्चे एक समय खाने की मेज पर अपना योगदान देकर गर्वान्वित महसूस कर सकें। यासुकिचान पोलियो ग्रस्त था। वह अपने शरीर को दिखाने से हिचकिचाता । यासुकिचान जैसे बच्चों की झिझक दूर करने के लिए वे स्विमिंग पूल में बिना कपड़ों के नहाने को कहते , जिससे सबकी झिझक मिट जाय । शरीर से कमज़ोर बच्चे भी एक दो दिन के बाद सहज महसूस करने लगते । हीन भावना जाती रहती।
बच्चों को निडर बनाने के लिए कोबायाशी ने उनका शिविर लगाया और रात में भूत वाला खेल खिलाकर भूत का भय दूर किया। अभिव्यक्ति की क्षमता को बढ़ाने के लिए हेडमास्टर जी सभी बच्चों को आगे आकर कुछ न कुछ बोलने को कहते।जो नहीं बोल पाता उसे बोलने के लिए प्रेरित करते। बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए वे उन्हें सकारात्मक टिप्पणियां दिया करते। तोतोचान को हमेशा कहा करते "सच में तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो"।
इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मुझे महसूस होता है कि इस पुस्तक को हर माता-पिता , शिक्षा विदों,शिक्षकों और शिक्षा से सरोकार रखने वाले हर व्यक्ति को पढ़ना चाहिए। आज हमें "तोमोय" जैसे विद्यालयों व सोसाकु कोबायाशी के जैसे शिक्षकों की नितांत आवश्यकता है।क्योंकि "तोतोचान "तो हर देश ,हर जगह और हर काल में मौजूद हैं ,लेकिन सोसाकु कोबायाशी जैसे शिक्षको का नितांत अभाव है। - लेखिका अनीता ध्यानी
1 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुंदर और गहन समीक्षा के लिए हृदय से नमन 🙏 अनीता ध्यानी जी ।
जवाब देंहटाएंबाल मनोविज्ञान की स्पष्ट समझ रखने वाले एक योग्य शिक्षक के गुणों को प्रतिदर्शित करती है कहानी तोतोचान्।
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