आध्यात्मिक हिन्दी कविता पथ | Spiritual Hindi Poetry Path | Ishwar Tariyal Prashan

आज की कड़ी में पढ़िए आध्यात्मिक हिन्दी कविता पथ एवं दुर्बल Spiritual Hindi Poetry Path विस्तृत सारांश सहित -

पथ

"पथ" 

अपने पथ पर आगे बढ़कर,
तुमने घर किसी का तोड़ दिया।
कदम बढ़े तेरे पथ पर तो,
टूटे हुए घर को खड़ा मैंने कर लिया।।

सूरज की किरणों में सवार होकर तूने,
किसी के फूल को मुरझा दिया।
आँखों मे सात समुंद्र छिपाकर,
सूरज को बन्धक मैंने बना लिया।।

मुड़कर पीछे मुझे देखकर तूने,
हवा की दिशा-मेरी साँसों को रोक दिया।
संकट में मुझे पाकर,
ईश्वर ने अवतार लिया।।

छुप गया तू अपने घर में,
प्रभु ने धरती को उठा दिया।
पथ पर धर्म के रक्षक ने ,
तेरे घर को उजाड़ लिया।।

ब्रह्मअस्र के अंहकार ने तुझे,
अपने पथ से भटका दिया।
पथ पर चलकर तूने अपना,
रास्ता क्यों बदल लिया?।।
                         ✍️ ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"

(यह कविता मेरी काव्य पुस्तक "ईश्वर" से संकलित है)

सारांश 

अपने ज्ञान ,विद्व्ता अथवा बल या धन -दौलत ,प्रसिद्धि के अंहकार में मनुष्य ने अपने जीवन में किसी निर्बल प्राणी की आत्मा को दुखा दिया हैं। मनुष्य के उसी जीवन मार्ग पर एक निर्बल प्राणी, दूसरे निर्बल प्राणी की भावना का सम्मान करते हुए हमेशा ही उसका मददगार हुआ है। एक ज्ञानी मनुष्य ने अपने अहंकार के कारण दूसरे के ज्ञान को कभी भी महत्व नहीं दिया है। दूसरे मनुष्य के ज्ञान को एक अहंकारी मनुष्य ने कभी भी उपयोगी न समझते हुए उसे कभी भी फलने -फूलने नहीं दिया। जब एक निर्बल ज्ञानी मनुष्य ने अपने आत्म विश्वास के बल पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया हैं तब वह अहंकारी मनुष्य यह देखकर अपने अंहकार के कारण विचलित हो गया है और चारो तरफ से उस निर्बल ज्ञानी पुरुष के विरुद्ध षड़यंत्र रच दिया हैं। 
इस प्रकार जब -जब एक असाहय , निर्दोष ,निर्बल प्राणी पर अंहकारियो द्वारा अत्याचार हुआ हैं , तब -तब धरती में अपने भक्तों की रक्षा के  लिए ईश्वर ने अवतार लिया है। अथवा ईश्वर के रूप में उसका साथ किसी न किसी ने दिया है। तब भी उस अहंकारी मनुष्य ने अपने अहंकार के कारण अपनी गलती अथवा अपना अहम् कभी भी स्वीकार नहीं किया बल्कि उस निर्बल ज्ञानी पुरुष से हमेशा नजरे चुराने की कोशिश की । 
धर्म के मार्ग पर चलने वाले पुरुष ने अथवा धर्म की रक्षा करने वाले ईश्वर ने जब अहंकारी पुरुष के विरुद्ध आवाज उठायी तो अहंकार के कारण उस अंहकारी पुरुष ने अपना ज्ञान ,विद्व्ता अथवा बल या धन -दौलत ,प्रसिद्धि  आदि सब कुछ पल भर में ही खो दिया। अपने ज्ञान ,विद्व्ता अथवा बल या धन -दौलत ,प्रसिद्धि के अंहकार ने मनुष्य को उसके उद्देश्य एवं लक्ष्य से भटकाया हैं, इसलिए ज्ञान ,विद्व्ता अथवा बल या धन -दौलत ,प्रसिद्धि अर्जित करते हुए अपने उद्देश्य एवं लक्ष्य को अंहकार से दूर रखकर कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।  
      - ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"(कवि/एडमिन)

दुर्बल

दुर्बल जन कुंठित बना , 
राजकाज छोड़कर सब। 
मौन खड़ा दुर्बल जन, 
उल्लास किये जा रहे सब।

किये जा रहे शर्मिन्दा दुर्बल को, 
राजा संग सब दरबारी।
आँसू बह निकले दुर्बल की , 
समझ न पाया कोई दरबारी।

भरी सभा में दुर्बल जन को , 
हँसी का पात्र बना दिया। 
कुछ न कह सका दुर्बल , 
मेरे सीने से लिपट गया।

समझ गया पीड़ा दुर्बल , 
आँसू मेरा बहने लगा।
चोट खाये वह दुर्बल ,
आँसू मेरा पोंछने लगा। 

लड़खड़ाने लगा दुर्बल, 
हाथ मैंने पकड़ लिया।
गले लगा लिया उसने , 
जीने का सहारा मिल गया।।  

समझ गया दुर्बल जन ,
चोट दिल ने भी खायी है मेरी। 
पात्र हँसी का मैं भी बना हूँ, 
समझ गए संग सब दरबारी।। 

जीवन है हँसने के लिए , 
है जीवन मुस्कराने का। 
जीवन में सदा खुशियाँ रहे , 
जीवन है लहराने का। 

जीवन में होता है सपना , 
आगे बढ़कर निकल जाने का। 
बाधा अगर जीवन में आये, 
रास्ता मिले बाहर निकल आने का।

सहारा बनो किसी दुर्बल का ,
आशीष तुम्हें मिल जायेगा। 
हँसी का पात्र मत बनाओ दुर्बल को, 
किसी का विश्वास टूट जायेगा।। 

आज तुम बलवान हो , 
कल कैंसा आयेगा।
कोई नहीं जान सका, 
समय बलवान हो जायेगा।

हो जाओगे एक दिन दुर्बल ,
समय ऐसा आयेगा। 
कुंठित किया जिसको तुमने, 
नजर वो दुर्बल सामने आयेगा     
  - ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"(कवि/एडमिन)
  

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