वो
हवा का एक झोंका बन,
छूकर निकल गई वो।
मन को मेरे बेचैन कर,
धोखा बन कर रह गई वो।।
एक झलक दिखलाकर अपनी,
नई कहानी गढ़ गई वो।
तन में सिहरन और,
मन में हलचल पैदा कर गई वो।।
नजर -भर भी देख न सका,
और कितना कुछ कह गई वो।
पलभर में ही जाने कैसे,
मुझको पूरा पढ़ गई वो।।
ख्वाबों की एक नई दुनिया,
जिसमे आकर बस गई वो।
मन -मंदिर में मूरत एक,
उसमे भी रच गई वो।।
खुली आँखों से ढूंढा पर,
बंद आँखों से दिख गयी वो।
हकीकत थी या कोई छलवा,
जो भी थी...
जिंदगी रंगो से भर गयी वो ।।
सौन्दर्य
चाँद की चांदनी में,शबनम जो नहायी ।
कहीं दूर फलक से
एक आवाज सी आई।।
एक चंचल; शोख हिरनी सी ,
दौड़ लगाती आयी।
तन से मेरे लिपट गई वो ।
ज्यों कोहरे की चादर,
भीनी -भीनी खुशबू उसकी,
फिजा में फ़ैल गई ।।
मन को मेरे विचलित कर,
दूर क्षितिज में जा बैठी,
रूप सलोना दमक रहा था,
ओंस की एक बून्द-सा ।
नयन उसे निहार रहे थे ,
मैं बेजान मूरत-सा।।
कली जैसी खिल रही हो,
जब ली उसने अंगड़ाई।
भौंरा बन मैं भी मंडराया,
उसने बांहे जब फैलाई।।
कुछ देर तलक हो तो वो,
इतराई ,इठलाई।
फिर आगोश में आकर,
मेरे को समाई ।।
- कवयित्री लक्ष्मी चौहान
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