सेवक
तेज मुख सुन्दर वरण,
शीतल समान स्वभाव।
दिल मे दया,
हाथों में दोस्ती,
आंखों में स्नेहभाव।।
जनमानस के सेवक हैं,
भारत माँ के सपूत।
धन्य हुआ देश मेरा,
पाकर ऐसा कस्तूर।।
सुन्दर मन है जिनका ,
बन गये देश प्रधान।
सबको साथ लेकर चलना,
मेरा उन्हें प्रणाम।।
जनसेवा में झुकाया सिर,
त्याग दिया घर बार।
ऐसा भारत कभी न बना,
विश्वगुरु बने हर बार।।
माँ-बाप का कर्म यह,
ईश्वर ने दर्शन दिये।
धर्मार्थी एक राह पर ,
तन से कांटे निकल गये।।
हिमालय की गोद में सन्त ध्यान पर,
जीवन की सच्चाई जान गये।
आँखें खुली तो महसूस हुआ,
ब्रह्ममांड का रहस्य पा गये।।
जनसेवा धर्म जीवन तेरा,
लौटे घर ज्ञानदाता।
कर्मभूमि का वह है सेवक,
जीवन अपना सफल बनाता ।।
भारतवर्ष का भाग्य विधाता,
आँचल में शरण दे गंगा माता।
नव भारत का नव निर्माता,
बन गया देश का सेवादाता।।
पुरुषोत्तम श्रीराम भक्त रहे,
बन गये सुंदर कर्मदाता।
संस्कृति हमारी जीवत रहे,
सेवक थके न हे ! विधाता।।
देवभूमि में आज कदम तुम्हारे ,
स्वागत करने आयी है जनता।
पुष्प लिए खड़े हैं द्वार पर ,
मैं काश स्वागत करने आता।।
सम्मान में तुम्हारे हे ! सेवक
मैं आज स्वागत गीत गाता।
सेवक थके न हे ! विधाता,
मैं काश स्वागत करने आता।।
मैं काश स्वागत करने आता।।
मैं काश स्वागत करने आता।।
जय हिन्द। जय भारत। जय उत्तराखंड।
- ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"
(यह कविता मेरी काव्य पुस्तक "ईश्वर" से संकलित है जिसे संशोधित एवं संक्षिप्त कर लिखा गया है। )
कविता की पंक्तियों को राजनीति से कदापि न जोड़ा जाए। एक व्यक्ति विशेष के प्रति कवि की भावनाए व्यक्त की गयी है। कवि की भावनाए आपकी पसन्द या नापसन्द हो सकती है।
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1 टिप्पणियाँ
Bhut sundar
जवाब देंहटाएंBhut bhut subhkamnaaye
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