आस्था एवं धर्म | एक आध्यात्मिक हिन्दी कविता मैं | Motivational Hindi Poem
मैं
मैं घड़ी की सुई अपने पथ में,धर्म- अधर्म से अनजान मैं,
मंजिल मिली ईश्वर के द्वारा।।
बूँद-बूँद मैं बहती धरती में,
पानी की एक धारा।
आसमान से देख रहा हूँ,
तेरा सुन्दर एक नजारा।।
एक बूँद पानी हे प्राणी !
तेरी प्यास मैं बुझाउ।
चारों तरफ फ़ैली हरियाली,
तेरे फूल मैं खिलाउँ।।
सागर का निर्माण करके,
तुझे धरती मैं नहलाऊ।
थोड़ा निगलकर तेरी मिटटी,
आज बदनाम मैं हो जाऊ।।
अदृश्य बनकर यहाँ,
मैं बहती पवन तेरे संग में धरा।
ऋतुओं का साथी बनकर गिरगिट ,
हर प्राणी का मैं हूँ प्यारा।।
तू मुझे जहर पिलाये इंशान,
मैं तेरा जीवन बचाऊँ।
क्रोध में बनकर तूफान ,
तेरी कालियाँँ मैं मुरझाऊं।
रणभूमि मैं तीर -कमान,
यहाँ वीरो की जयकारा।
वीरो का मैं रक्षक यहाँ,
कोई नही किसी का सहारा।।
अंगुलियों में नाच -नाचकर,
वीरो की शान मैं बन जाऊ।
जंग में वीरो का विजय जश्न,
शहीदों पर मैं आँसू बहाऊं।।
शब्द मैं कलम -कागज,
आप होंगे मेरा साथ दूसरा।
बाल्मिकी यहाँ कालिदास,
कौन हुआ उस दिन बेचारा।।
वेद पुराण में कलम कागज,
मैं धन्य भाग कमाऊं।
मूर्ख के हाथों में फँसकर,
मैं अपनी किस्मत अजमाऊं।।
समय मैं रोशनी अन्धेरा,
कभी जीता- कभी हारा।
तन से काँटो को फेंका,
गले में फूलों को संवारा।।
धर्म पथ पर कर्म करके,
मैं उजाला तुझे दिखाऊं।
बंजर खेती में पानी सींझे,
मैं अन्धा तुझे बनाऊं।।
मैं घड़ी की सुई अपने पथ में,
हर पल आत्मा ने मुझे पुकारा।
धर्म- अधर्म से अनजान मैं,
मंजिल मिली ईश्वर के द्वारा।।
-ईश्वर तड़ियाल "प्रश्न"(लेखक/एडमिन )